
हर साल आते हैं आंकड़े, मगर सवाल वही रहता है- भारत और पाकिस्तान के बीच 1 जनवरी और 1 जुलाई को कैदियों की सूची का आदान-प्रदान होता है। इस बार की लिस्ट ने एक बार फिर उस कड़वी सच्चाई को उजागर कर दिया है, जो हर भारतीय के दिल में गहरे उतर जाती है—246 भारतीय नागरिक पाकिस्तान की जेलों में बंद हैं, जिनमें से 159 ऐसे हैं जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है।
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193 मछुआरे, 53 आम नागरिक – इंसानियत कहां है?
इन 246 भारतीयों में से 193 मछुआरे हैं जो अक्सर समुद्री सीमा के उल्लंघन में पकड़े जाते हैं, जबकि 53 आम नागरिक हैं, जिनमें मानसिक रूप से बीमार या गलती से सीमा पार करने वाले लोग शामिल हैं। इनमें से कई लोगों को न तो कानूनी मदद मिली और न ही काउंसलर एक्सेस, जो कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत हर विदेशी कैदी का हक होता है।
भारत का कड़ा रुख: “अब और नहीं!”
भारत सरकार ने साफ तौर पर पाकिस्तान को चेताया है कि जिन कैदियों की सजा पूरी हो चुकी है, उन्हें तुरंत रिहा किया जाए। इसके साथ ही 26 कैदियों को दूतावासीय पहुंच (Consular Access) न दिए जाने पर भी कड़ी आपत्ति जताई गई है।
पाकिस्तान की चुप्पी, इंसानियत की हत्या!
भारत ने 2014 से अब तक पाकिस्तान से 2,661 मछुआरे और 71 आम नागरिकों को रिहा करवा लिया है। सिर्फ 2023 में ही 500 मछुआरे और 13 नागरिक वापस लाए गए। मगर जब बात पाकिस्तान की आती है, तो वह हर बार या तो चुप रहता है या मामले को राजनीतिक हथियार बना देता है।
जुर्म नहीं, फिर भी सजा!
कई भारतीय बिना किसी अपराध के सालों से पाकिस्तान की जेलों में सड़ रहे हैं। सोचिए, एक गरीब मछुआरा जो अनजाने में सीमा लांघ गया, उसे जासूस समझकर जेल में डाल दिया गया। एक मानसिक रोगी जो गलती से भटक गया, उसकी पूरी ज़िंदगी अंधेरी कोठरी में बीत रही है। क्या यही है इंसानियत?
क्या कैदियों की लिस्ट अब भी सिर्फ “कागज़ी” रहेगी?
हर बार आंकड़े बदलते हैं, नाम बदलते हैं, लेकिन दर्द और इंतजार वही रहता है। क्या पाकिस्तान कभी इंसाफ और मानवता की भाषा सीखेगा? या फिर हर साल यह सूची एक दस्तावेजी खानापूर्ति बनकर रह जाएगी?
अंतिम सवाल: क्या अब भी चुप बैठना सही है?
भारत ने एक स्पष्ट संदेश दे दिया है – “अब आंखों में धूल नहीं झोंकी जाएगी। इंसाफ के बिना शांति नहीं होगी।” यह सिर्फ राजनीतिक मसला नहीं, बल्कि मानवाधिकार और मानवीय गरिमा का मामला है।
इंसानियत को सरहदों से ऊपर रखना होगा
भारत ने बार-बार मानवता का परिचय दिया है। अब समय आ गया है कि पाकिस्तान भी अपनी नीति बदले और निर्दोष भारतीयों को तुरंत रिहा करे। क्योंकि यह अब संख्या का मामला नहीं, इंसाफ और ज़िंदगी का सवाल है।
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